परिचय
हल्द्वानी, उत्तराखंड का एक प्रमुख शहर है जिसे कुमाऊं का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। इस शहर का इतिहास काफी समृद्ध है और इसमें कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
हल्द्वानी का नामकरण
हल्द्वानी नाम की उत्पत्ति कुमाऊंनी भाषा से हुई है। 'हल्दू' का अर्थ होता है हल्दी का पेड़ और 'वनी' का अर्थ होता है जंगल। यानी पहले इस क्षेत्र में हल्दी के पेड़ों का जंगल हुआ करता था। इसलिए इस स्थान को हल्दूवनी कहा जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर हल्द्वानी हो गया।
प्राचीन काल से लेकर ब्रिटिश काल तक
- प्राचीन काल: हल्द्वानी के इतिहास के बारे में प्राचीन काल की अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह माना जाता है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही आबाद रहा है।
- मध्यकाल: मध्यकाल में यह क्षेत्र कुमाऊं के विभिन्न राजाओं के अधीन रहा।
- ब्रिटिश काल: 18वीं शताब्दी में ब्रिटिशों ने भारत में अपना पैर जमाना शुरू किया और कुमाऊं क्षेत्र भी उनके नियंत्रण में आ गया। 1834 में हल्द्वानी को एक मार्ट के रूप में स्थापित किया गया था, जो ठंड के मौसम में भाबर का दौरा करने वाले पहाड़ी लोगों के लिए एक व्यापारिक केंद्र था। 1882 में बरेली-नैनीताल प्रांतीय सड़क और 1884 में रोहिलकुंड और कुमाऊं रेलवे द्वारा भोजीपुरा-काठगोदाम रेलवे लाइन की स्थापना ने हल्द्वानी को एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना दिया।
स्वतंत्रता के बाद
- स्वतंत्रता के बाद: भारत की आजादी के बाद हल्द्वानी तेजी से विकसित हुआ। यह कुमाऊं का सबसे बड़ा व्यापारिक, शैक्षणिक और आवासीय केंद्र बन गया।
- वर्तमान समय: आज हल्द्वानी उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण शहर है और यह कुमाऊं का प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है।
हल्द्वानी का महत्व
- व्यापारिक केंद्र: हल्द्वानी कुमाऊं का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है। यहां कई बड़े बाजार और शॉपिंग मॉल हैं।
- शैक्षणिक केंद्र: हल्द्वानी में कई स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं।
- पर्यटन: हल्द्वानी नैनीताल जाने का मुख्य मार्ग है। इसलिए यहां पर्यटकों की भीड़ रहती है।
- सांस्कृतिक केंद्र: हल्द्वानी कुमाऊं की संस्कृति का केंद्र है। यहां कई मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे हैं।
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